आदमी कभी बुढ़ा नहीं होता है

 आदमी कभी 

बुढ़ा नहीं होता है 
वो तो बस 
असल जीवन को छूता है
निरंतरता से...
विचारों में परिपक्वता आ जाती है
उम्र सीख दे जाती है
वक्त के साथ-साथ

वो बचपन की नादानी
अल्हण वो जवानी
ठहर जाती है
वक्त के साथ-साथ

चाह कर भी
मस्ती नहीं आती है
उलझा रहता है इस तरह
कोई खुशी नहीं भाती है
जिंदगी में..

और आदमी 
जिम्मेदारियों के बीच
फंसते जाते हैं
कुछ लड़ते हुए जाते हैं
कुछ हार जाते हैं
वक्त के साथ-साथ

जिंदगी में
हार जीत 
मायने नहीं रखते हैं
असल जीवन के सिवा
कुछ नहीं भाते हैं
वक्त के साथ-साथ

और आदमी
अपनी खुशियों को
स्थांतरित कर जाते हैं
अपनो के खातिर
स्वयं को अर्पित कर जाते हैं
जिसमें उसे
सच्ची खुशी मिलती है
हर तलाश हर कोशिश में
जिसे मिलती है
वक्त के साथ-साथ

हाॅ॑ , आदमी उस वक्त
बुढ़े हो जाते हैं
जब अपनो के बीच में
महत्त्व खो जाते हैं
उपेक्षित और असहाय !!!!!!!
आदमी कभी बूढ़ा नहीं होता है


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