चांद और तन्हाई

चाॅ॑द की खामोशी
कभी समझें न कोई है
कुछ देर निहार के
बस्ती रात में सो गई है
चाॅ॑द जानता है सफ़र अपना
उसके हिस्से सिर्फ तनहाई है
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