हम दोनों
हम दोनों हैं ऐसे
दो जिस्म एक जान हो जैसे
जले दोनों दिन राती
तेल और बाती हो जैसे
एक जले दूजा को महसूस हो
हम तुम पास हो जैसे
नदी के दो किनारे
बहते ही जाना है मगर
आखिर सागर में मिलना हो जैसे
मैं सूरज हूं तुम चांद हो
मैं दिन को जलूं तुम रात को जैसे
तड़प के कोयल गीत सुनाए
बरसों की प्यास हो जैसे
-राजकपूर राजपूत
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