tum-bhul-rahen-ho - लोग अक्सर दूसरों को देखकर जीते हैं । ऐसे जीते हैं कि मानों उसने बेहतर मार्ग चुन लिया है । जिसे इतना भी मालूम नहीं है कि क्या करना है । मगर जीते हैं । दुनिया के हिसाब से । दूसरों को अधिक सुनने, देखने से उसके जैसा बन जाता है । जहां से पूरी जिंदगी अपने मनमर्जी से जी नहीं पाते हैं ।
तुम भूल रहे हो
tum-bhul-rahen-ho
तुम भूल रहे हो
दुनिया की इस भीड़ में
अपनी पहचान
तुम्हारी चाहत क्या थी
जाना कहां था तुम्हें
क्या थे अरमान
क्या मिल गया तुम्हें
कभी ढूंढना
अकेले में बैठकर
कभी खुद से पुछना
आधी जिंदगी दूसरों की
आधे से अनजान
जिसे तुम भूल रहे हो
दुनिया की इस भीड़ में
उसे पहले तू जान !!
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तुम भूल रहे हो
जीवन का उद्देश्य
अधिक श्रुति सुनकर
बहक रहे हो
जैसे खुद का जीवन है
चहक रहे हो
मगर तू अनजान है
दुनिया बहला कर
अपने जैसी बना रही है
तुम भूल रहे हो
अपना जीवन पथ
तुम चून रहे हो
दूसरों की जिंदगी
जिसमें सुख नहीं
शांति नहीं
फिर भी चल रहे हो
तुम भूल रहे हो
अपने अंतर्मन पढ़ना
खुद को गढ़ना
तुम चढ़ रहे हो
दुनिया की बताए
सीढ़ियां
जहां तेरी मंजिल नहीं है !!!
---राजकपूर राजपूत
2 टिप्पणियाँ
Bahut hi sundar rachana
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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