कह नहीं पाता हूॅ॑ कविता

मैं क्या बोलूं
यही कि
मेरे अधरे प्यासे हैं
कंठ मेरे सूखे हैं
हृदय मेरे भूखे हैं
तेरे प्रेम के लिए
मैं क्या लिखूं
कविताएं
शब्द शब्द मेरे
अधूरे हैं
तेरे बिना कहां पूरे हैं
तुम्हारी समझ
मेरी समझ से परे हैं
इसलिए 
मैं क्या कहूं
अपनी हृदय की बात
बार बार होती है आघात
सुनकर तुम्हारी बात
इसलिए
चुप रहता हूॅ॑
तुम्हारी चाहत
मेरी चाहत से
भिन्न है
इसलिए
मैं अपने में
खोया रहता हूॅ॑
अपने दर्द में
जिसे मैं
कह नहीं पाता हूॅ॑
तुम्हारे सामने
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मैं कह नहीं पाता हूॅं










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