Ahankar aajkal ke Kavita Hindi
दंभ भरता है यहां हर कोई
मुझसा नहीं है दूसरा कोई
वो गिर जाएंगे उठ जाएंगे
उससे बड़ा गिरगिट ना कोई
साधना है जिसे अपना उल्लू
सच ना कोई ईमान ना कोई
प्यार उन्हीं के नफ़रत उसी के
उससे बड़ा दोगला ना कोई
सियासत ले गई जो घर तक
उससे बड़ा चालाक ना कोई
शब्द एक ही थे अर्थ अनेक
उससे बड़ा बुद्धिजीवी ना कोई
कोई ज़रूरी नहीं है वो सही है
बस तर्क है न्याय ना कोई
लोग दिखावा में मशगूल हैं
जैसा चाल वैसा चरित्र ना कोई
वो प्रेम को जटिल बना कर रख दिया है
प्रेम की अब परिभाषा ना कोई
अपनी गलतियां छुपाने में माहिर हैं
दूसरों में दोष है खुद में दोष ना कोई !!!!
---राजकपूर राजपूत''
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