Aashiyana aur majburi
कौन नहीं चाहता है
खुद का आशियाना
जब शाम ढले तो
अपने घर में चले आना
सबकी जिंदगी में शामिल है
पाना,,खोना और खोजना
वक्त लग जाता है घर आने में
जिंदगी की तलाश में
ठहरने का मन होता है अपने आशियाने में
मजबूर करता है तलाश अपनी
और फिर घर से निकल जाना !!!
पंछी भी उड़ आते हैं अपने आशियाने में
मगर हमें फुर्सत कहां कमाने खाने में
जद्दोजहद ही अपनी ऐसी है
आ गए शहर पराए के आशियाने में !!!
---राजकपूर राजपूत''
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