जो आदमी वासनाओं के भूखे हैं

जो आदमी वासनाओं के भूखे हैं
उनके भीतर प्रेम ही तो सूखे हैं

संतुष्टि नहीं मिलती है नजरों को
वो आदमी गिर-गिर के खूब लूटे हैं

उसे प्रमाणिकता चाहिए सफलता की
जो सच दिखा रहा है मगर झूठे हैं

आदमी क्या है मिट्टी का पुतला मगर
ऐसे जीते हैं वो सच दुनिया झूठे हैं

हैं यकीं इंसान से बेहतर जानवर है
जानवर हद में हैं मगर इंसान तो भूखे हैं
---राजकपूर राजपूत''राज''

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