शाम की थकावट - कविता

ये शाम की थकावट थी
जो धीरे-धीरे
ख़ामोशी में
तब्दील हो गई थी
और सारी बस्ती सो गई थी
अपनी तलाश के बाद
अपनी थकावट में
झिगुरें की आवाजें
साफ सुनाई दे रही थी
इस अंधेरे में
सारी बस्ती
सो गई थी
अपनी तलाश के बाद
कुछ बच गई थी
इसलिए रात के अंधेरे में
कुछ ख्वाब बुन रहे
गहरी नींद में
जिसे पाना था
एक नई सुबह के बाद
फिर तलाश होगी
जिंदगी की
---राजकपूर राजपूत''
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