तुम मेरे प्रेम को

तुम मेरे प्रेम को
मार रहे हो
सवाल उठा के
संशय भर रहे हो
मेरे विश्वास में
जो चीज थी
सामने है
ऑ॑खों के
एक सत्य
जीवन का
लेकिन तुम्हारा
स्वीकार ना करना
गुमराह करते जाना
खुद के
शब्दों से
और तर्कों से
काटते जाना
मेरे प्रेम को
तुम्हारा यूॅ॑ उलझा 
शायद दिल में
ख्याल अलग है तुम्हारे
---राजकपूर राजपूत''राज''

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