अर्पित

वो अर्पित कर रहा था
अपने भावों को
समर्पित कर रहा था
अपनी पीर को
ईश्वर के सम्मुख
हृदय की 
सारी पीड़ाओं को
उद्गार कर रहा था 
जो थक चुका था
अपने जीवन में
और अपनी
हर तलाश में
जो खुद को 
अकेला पाया था
अपना सर्वस्व-
समर्पण कर रहा था
ईश्वर के सामने
उपस्थित हो कर
संवाद स्थापित करके
हृदय में 
प्रेम जागृत कर
स्वयं को
न्योछावर कर रहा था
चरणों में
अपने प्रियतम के
विनती कर रहा था
सदा -सदा के लिए
स्थान प्राप्ति हो जाएं
और सारी दुनिया
छूट जाएं
ताकि उसके जीवन में
सम्पूर्णता का अहसास हो

---राजकपूर राजपूत''राज''














 



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