दुनिया के किसी कोने में रहो
तुम चाहो या ना चाहो
जब तुम्हे कोई चोट लगे
कोमल पैरों में तेरे
कोई कांटा चुभे
तब मूॅ॑ह से जो शब्द-
माँ निकलती है
सारे जख्मों और तकलिफों को
भर देती है
दुनिया के इस भीड़ में
जब शांति न मिले दिल में
याद कर लो माँ के आंचल
छाॅ॑व कर देगी इस धूप में
रोओं किसी कोने में
माँ के आंचल भीग जाती है
बेटे के तकलीफ देख
माँ को नींद कहाँ आती है
कोई पुछें या ना पुछें
एक नजर हमेशा तुम्हे देखें
बन जाओ कितने भी बडे़
माँ के लिए मासुम-दुलारा ही दिखे
कोई लाख करे करम यहाॅ॑
दुध का कर्ज नहीं दे पाएगा
तिनका भी माँ का कर्ज
चुकाने में उम्र गुजर जाएगा
कोई बताऐ भी माँ क्या होती है?
क्यों सबको खिला के भूखी सो जाती है?
इतने त्याग ,तपस्या के बाद भी
क्यों आखरी पडा़व में अकेली रह जाती है?
---राजकपूर राजपूत "राज''
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Lajvab
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