चलते हैं लोग अब सर को झुकाए हुए

चलते हैं कुछ लोग सर को झुकाए हुए 



चलते हैं कुछ लोग सर को झुकाए हुए
दिल के इरादें को दिल में छुपाए हुए

कहें अपने दिल की बात वो किस तरह
जो शख्स खुद के साए से घबराए हुए

उसकी असलियत आ गई सबके सामने
जो रखे थे मीठी बातों से ज़हर दबाए हुए‌

मैं समझता था जिसे अक्लमंद इस जहां का
वो निकला सहुलियत में सच को छिपाए हुए

जिरह ही करना था तो कुछ सच्चाई निकालते
झूठ की बुनियाद पर ही सच को झुकाए हुए

दिल में दुविधा है उसकी कैसी सुविधा है ?
फ़र्ज़ जाने ना और हक़ के खातिर ललचाए हुए

मेरी तनहाई का आलम ना जाने कोई 'राज'
ये बेदर्द ज़माने से बार-बार चोट खाए हुए

---राजकपूर राजपूत''
चलते हैं लोग अब सर को झुकाए हुए
















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