मेरा प्रेम

मेरा प्रेम 


मेरा प्रेम उस समय
जागृत हुआ था
जब तुमने मुझे छुवा था
अपनी ऑ॑खों से 
मेरी ऑ॑खों को
तलाशा था खुद को 
मुझमें...
उस वक्त ना जाने क्यों
 ऐसा लगा कि -
(मेरे प्रेम को)
जिसकी तलाश थी
वो तुम ही हो
और एक दूसरे के
करीब आ गए थे
तुम्हारी बातों में
अद्भुत अपनापन था
बता नहीं सकता..
कैसा अहसास था
तेरे चेहरे की मासूमियत
और झुकी नज़रों से
बातें करना
मन कर रहा था
तुम्हारी बातों को
सुनता रहूॅ॑
उस वक्त तुमने
मुझे स्वीकारा था
बेशक कुछ देर बाद
हमारे लब चुप हो गए थे
एक दूसरे में खो हो गए थे
उस वक्त मेरे क़दमों ने कहा -
ठहरों ! ज़रा तुम-
मंजिल मिल गई है
---राजकपूर राजपूत
Reactions

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ