मेरी आंखों के अश्क चुरा के ना जाय
मेरी ऑ॑खों के अश्क चुरा के ना जाय
मैं खुश हूँ बहुत मुझे समझा के ना जाय
बहुत जिरह करते हैं दुनिया के लोग यहाँ
कोई अक्लमंद मुझे बहका के ना जाय
पल-पल का खतरा है देख के चला करो
फूंक मारो चाय को कही अचानक ना जाय
इश्क भी अजीब है जलता हूँ उसकी यादों में
मुझे डर है कि इसे कोई बुझा के ना जाय
इश्क मासूम है इसमें चालाकी नहीं करते
वो जानते हैं सियासत कहीं धोखा दे के ना जाय
पीते हो "राज" जिन्दगी को जी भर के पीओ
लड़खडा़ रहे है पैर तू कहीं गिर ना जाय
कोई उसे भी कह दें मेरे साथ रहे उम्र भर
और छूटे साथ तो जिन्दगी की शाम हो जाय
------राजकपूर राजपूत
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