हे ! मोहन इस जग को नचा दें
सुध-बुध,सब कुछ खोकर
समर्पण, अपनत्व के भाव जगाकर
अब प्रेम जल से सबको नहला दें
बांसुरी की धुन ऐसी बजा दे
हे ! मोहन..
पुलकित हो जाएं सबका तन-मन
नाच उठे अब धरती-गगन
व्योम से बरसे प्रेम रस
ऐसी अद्भुत वर्षा बरसा दे
बांसुरी की धुन ऐसी बजा दे
हे ! मोहन ..
ना ऊधो की बात सुनें
ना ही जग के संग रहें
ॲ॑खियाॅ॑ तेरे दर्शन की प्यासी
सदा तेरे चरणों में जीएं और मरे
ले के अधरों में सबको
अपने हृदय में बसा लें
बांसुरी की धुन ऐसी बजा दे
हे ! मोहन इस जग को नचा दें
---राजकपूर राजपूत''राज''
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