सियासत और इरादें

उलझा रहे थे
या सुलझा रहे थे
बातों ही बातों में
सबको बेवकूफ बना रहे थे
जो सारे सच्चाई को
बुराई बता रहे थे
अपनी सुविधा अनुसार
खुद के इरादें छूपा रहे थे
खतरनाक...सोच से
सबको बहला रहे थे
ताकि ध्यान ना आ जाए तुझपर
इशारें करों, किसी और पर
इसलिए सबको भटका रहे थे
जबकि सच है... 
वहाॅ॑ धूॅ॑आ उठा है
किसी का घर फूंका है
बताओं...
किसलिए यूॅ॑ ही नाम उठा है
वहाॅ॑ आग लगी है
जहाॅ॑ इंसानियत शायद ! 
अभी-अभी मरी है
-----राजकपूर राजपूत 'राज"





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