अनकहे सच

               अनकहे  सच

                    (१)
अनकहे सच लाखों है इस ज़माने में
बदल जाते हैं सच झूठ के इमानो में
                     (२)
सभी जानते हैं हर सिक्के के दो पहलू
अपनी-अपनी मर्जी है जो चाहें रख ले तू
सियासत ही अक्लमंदी की पहचान है यारों 
जैसी हालत कुछ ही पल में रंग बदल ले तू 
                        (३)
क्या हो गया है इस दौर के इंसानों को
कोशिश नहीं की कभी सच जानने को
दौड़ रहे हैं पीछे-पीछे कौवा कान ले गया
मैं कहता हूॅ॑ कभी छू लेते अपने कान को

                         (४)
केवल समझदारों के लिए जिंद के आगे जीत है
नादानो के आगे तो खुद के सिवा ना कोई प्रीत है

------ राजकपूर राजपूत'"राज'"




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