gar-na-de-aasma-to-koi-gam-nhin-कोई यहाँ किसी के भरोसे नहीं है ! सभी अकेले हैं ! चाहें गिरे या संभले ! सब कुछ यहाँ अकेले करना पड़ता है ! बेहतर चरित्र सुन्दर व्यक्तित्व का निर्माण करता है ! चरित्र के अच्छे इन्सान किसी से डरते नहीं है ! और गिरा हुआ इन्सान संभलते नहीं है ! चंद पैसों या लालच में गिर जाते हैं ! जिससे सम्मान खो बैठते हैं !
gar-na-de-aasma-to-koi-gam-nhin-
ग़र ना दे आसमां तो कोई गम नहीं
जमी पर है मेरे पैर ये भी तो कम नहीं
तू हार जाएगा मुझसे ना टकरा कभी
तू गिरते हुए इन्सान है खुद्दार तो नहीं
वजूद -हस्ती मेरी भी है इस दुनिया में
क्या रखा है वहाॅ॑ उसने बुलाया तो नहीं
यूं जल-जल के नाम ना ले बेवफा का
मालूम है अब पहले जैसी बरसात तो नहीं
पकड़ के दूसरों के हाथों को न इतना इतरा
देखे है आसमां -जमी कभी मिलते तो नहीं
बनावटी दुनिया में क्या रखा है राज
टूटे-फूटे खण्डर है कोई ताजमहल तो नहीं
माना वो अक्सर किताबें की चर्चा करते हैं
लेकिन चरित्र में उतारते तो नहीं
उसके तर्क और बहस ग़ैर ज़रूरी है
अभी वो इंसान बना तो नहीं
उसे जिरह करना है अपने हिसाब से
नफ़रती है उसका ज्ञान प्रेम तो नहीं
इतना ही गुमान था तो सँभलते जरा
गिर गया है खड़ा तो नहीं !
--- राजकपूर राजपूत'
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