डाल-डाल पर जो फुदक रही थी
चीं-चीं की मघुर ध्वनि को
और बच्चों की मासूम सूरत को
करूणा भरें नयनों से निहार रही थी
चिड़िया डाल पर फुदक रही थी
सूरज की किरणों ने जब काम बांटा था
घुम- घुम के एक-एक दाना तब ढूॅ॑ढ़ा था
ढूॅ॑ढ रही थी बेशक दाना जंगल-जंगल
फ़िक्र में ममता की आंचल भीग रही थी
जो लेकर दाना चोंच में लौट रही थी
चिड़िया डाल पर फुदक रही थी
कर रही थी शिकायत मत जाना छोड़ के
रहना पड़ता है हमें तुझ बिन डर -डर के
मासुम सवालों को पंखों से सहला रही थी
बस दाना ढूॅ॑ढ के कुछ देर में ही लोट गई थी
मासुम सवालों से अद्भुत आनन्द मना रही थी
चिड़िया डाल पर फुदक रही थी
कुछ मनाते, कुछ हॅ॑साते, गीत गुनगुनाते हैं
मेरे राज दुलारे कह के हृदय से लगाते हैं
स्नेहमयी रोली से, ममता की थपकियों से
जो उज्जवल भविष्य की दुआ कर रही थी
पंखों की छांव में बच्चों को सुला रही थी
चिड़िया डाल पर फुदक रही थी
___ राजकपूर राजपूत 'राज'
0 टिप्पणियाँ