मेरा विश्वास यूॅ॑ ही नहीं

घर में मुन्ना अपने पिता जी का नकल कर रहे थे। एक ऊंचे पीढ़ा में अपनी थाली रखी और खुद जमीन पर बैठ गया। माॅ॑ ने भी उसकी मासूमियत भरे हरकतों को सहारा दिया। उसको पहले पानी दिया। फिर थाली में चांवल और सब्जी परोसी। मुन्ना पानी से थाली सहित पीढे़ं को घेरा और कहा-: " अब मेरे चांवल और सब्जी की रक्षा हो जाएगी। कुछ दुष्ट शक्तियां इसे छूं नहीं सकते हैं ! ओम्म्म्म…!" 
इतना कह कर खाना शुरू कर दिया । यह सब पास खड़े पिताजी देख रहे थे। उसने अपने बच्चे को प्यार से समझाया।
"यह सब गलत है बेटा ! पहले कुछ जमीन पर बिछा लो या फिर कुछ ऊॅ॑चे आसन पर तुम भी बैठों । ताकि तुम्हारे शरीर में भोजन से बनने वाले ऊर्जा गुरूत्वाकर्षण की वजह से जमीन में न जाएं । और ये जो पानी से भोजन को घेरे हो उसका मतलब यह नहीं है कि कोई दुष्ट तुम्हारा भोजन खाएगा । बस भोजन के पास आने वाले धूलकण को पानी खींच लेते हैं और कुछ नहीं ।"

"मुन्ना ऐसे ही खेल रहा है और तुम बुरा मान रहे हो" पास में खड़ी पत्नी ने कहा ।
मुन्ना कहाॅ॑ बुरा मान रहा है । देखों ! वो अपने लिए चटाई ले आया । बुरा तो आप मानती हैं । जब मैं ओम्म्म् का उच्चारण करता हूॅ॑ । जबकि मैं खाना शांति के साथ ग्रहण करने के लिए करता हूॅ॑। क्योंकि जैसा खाएं अन्न वैसा हो मन । "
"छोड़ो भी…! छोटी-मोटी बात को रख लेते हो  "!
"नहीं ! जी,हमारा तो यही मानना है कि पहले जाने फिर मानें ।"
दोनों के बीच कुछ यूॅ॑ ही नोंक- झोंक हुए। फिर हॅ॑स पड़े। मुन्ना अभी भी अपने पिता जी का नकल करके खाना खा रहा था । जिसके मासुमियत देख दोनों आनंदित थे ।

__ राजकपूर राजपूत'राज'

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