प्रेम मेरा अस्तित्व है,प्रेम जग का आधार
प्रेम बिना ये जीवन निरर्थक और ये संसार
प्रेम अटूट है मेरा मैं क्यों इसे मारूॅ॑
जहाॅ॑ इसकी छवि दिखे और इसे सवारूॅ॑
भीड़ बहुत हैं यहाॅ॑, हृदय मेरा अकेला
सबकी मर्ज़ी भीड़ में, मेरा मन अकेला
अवलंब हो गया मेरा प्रेम हाॅ॑ तुझपर निर्भर है
दर्द ,तड़प,चुभन जिसका बन गया अब घर है
उदीप्त हो उठते हैंमन कुछ आराम मिले
जब जब देखूॅ॑ उर के भीतर अद्भुत पीर हिले
ये वेग पवन भी क्या कह गया मेरे सुने मन में
मैं सवर जाऊॅ॑ तुम आओ प्रियतम मेरे जीवन में
हर कहीं दिख जाएगा जब -जब मन रम जाएगा
दरिया-सागर ये नदियां झरनें जब-जब गीत सुनाएगा
खुश वही है इस जग में 'राज' जिसने प्रेम को जाना
अंतर्मन में प्रेम बसे है इस जग को क्या समझाना
राजकपूर राजपूत'राज'
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