वे ऊब गई थी रिश्तों से

वे ऊब गई थी रिश्तों से
इसलिए ताजगी नहीं थी

व्यवहार में जीते थे मगर
जिंदगी जिंदगी नहीं थी

अजीब वैराग्य था सीने में
हॅंसी थी मगर दिल की नहीं थी

ज्ञान कहॉं से मिला है सोच रहा हूॅं
जानते हैं मगर ज्ञानी नहीं थी
---राजकपूर राजपूत''राज''
ऊब गई थी जिंदगी

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