मैंने कई बार

मैंने कई बार
अपने अंतर्मन से
तुम्हें झांका है
तेरी तस्वीर को
संवारा है
अपने कल्पनाओं में
मुलाकातें की है
गुफ्तगू की है
अपने ख्यालों में
जो इर्द गिर्द घूमती है
तेरी सूरत
जिसे मैंने
अपनी जिंदगी मानी है
---राजकपूर राजपूत''राज''


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