इंटरनेट बिना जिंदगी _एक पहलु

वह दुनिया ही कुछ और थी 
जहाॅ॑ रिश्तों के बीच दूरियाॅ॑ कम थी

बेशक वो अबुझ था
चालाकियों से कुछ कमजोर था
फिर भी दिल से खुश था
क्योंकि रिश्तों में ही खुशियां थी
वह दुनिया ही कुछ और थी

एक नज़र से देखेंगे
तो शायद हॅ॑स देंगे
तो लाज़मी है कि
वो मुस्कुरा देंगे
जो उसकी दिल की बात थी
वह दुनिया ही कुछ और थी

जहाॅ॑ दिल को टच नहीं करते थे
हाॅ॑, वो दिल में ही बस जाते थे
कर्त्तव्य को हरदम आगे रखता था
कुतर्क करना जिसने न जाना था
कर्म भूमि ही जिसकी पहचान थी
हाॅ॑ ,वह दुनिया ही कुछ और थी

छूते थे वास्तविक जीवन को
नित- प्रतिदिन प्रकृति को
अद्भुत आंनद के उस संसार को
गौरैया की चीं-चीं जहाॅ॑ गुंजती थी
वह दुनिया ही कुछ और थी

__ राजकपूर राजपूत'राज'
इंटरनेट बिना जिंदगी



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