चांद लगता है जैसे

ऐ ! चाॅ॑द लगता है जैसे
तू खुद में तन्हा है जैसे

शबनम पड़ी हैं जमीं पर
बहुत रोया है जैसे

नमी है उसकी ऑ॑खों में 
कई दर्द छुपाया है जैसे

कह ना सके दिल की बात
सागर का पानी गहरा है जैसे
---राजकपूर राजपूत''राज''

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